Monday, February 11, 2019

राजस्थानी कविता-“जामुन”


तू याद कर
म्हानै तू केवंती
थारी ढाणी भोत आछी है
खुली जग्यां में रेवणो
भोत आछो लागै थान्नै
खेत में खुल्ला चरता पसु
ठंडी हवा साथै उडती रेत
जामुन रे दरख्त री छियां
सगळां री करती तू बडाई
जामुन खावंते बरियां
थारा हो जावंता होठ लाल बैंगणी
सारा ना खा जाई केवंतै पाण
तू लड़ण सारू हो जावंती त्यार
लारलै भाजती तू
ठेट सामली धोळती पाळ तांई

जामुन री गुठळी फेंकती बरियां
केवंती-जामुन तो म्हारै सारू है
थे तो फगत रूखाळी सारू हो
फैर भोत देर तक हंसती तू
थारी हंसी सूं उड़ जावंतो म्हारो थकेलो
जामुन पर आपरो हक इयां बतावंती
जाणै ढाणी म्हारी नी थारी है
म्हारी मा कितणी खेंचती थारी मेर

तू दरी,खेसला,पंखा,स्वाटर बणणो
स्सो किं जाणती
पण सीखण रे मिस
आवंती ईज म्हारी ढाणी
तू दरी से मिस बुणती प्रेम
पंखै री झालर भरती साख
प्रेम हवा सूं ईज झीणो है
पण दरी रै हजारूं तागां सूं ईज
घणो तकड़ो है प्रेम

धोळती पाळ री बोरड़ी
ऊंचले धोरे री टाली
तू हरेक जग्या पूग जावंती
जाणै थारै पंख लागेड़ा हुवै
कितणी आजाद ही तू
पाळ पर चढ’र च्यारूं मेर
आभै में उडता पंछी दांई
भरती तू उडारी

ओ प्रेम ईज तो हो
नहीं तो दो कोस ऊंपाळो
कुण चाल’र आवै
गाम में दरी,स्वाटर सीखावणिया के कम हा
निभतो रेयो प्रेम
बणती रेई दरी,स्वाटर,मफलर
प्रीत रा दिन आछा हुवै
पण हुवै कम है
बगत नै कद सुहाई आपणी प्रीत
मायतां ईज निभा दी रीत
सैर में नौकरी लागेड़ो मिनख
बाकी छोरी रा भाग
मालक करै जको ई ठीक हुवै

आज हूं सोचूं सै’र में
कियां रेवंती होसी तू
छोटे सै घर में
थान्नै तो आछी लागती खुली ढाणी
ढाणी आगला दरख्त
खाळै में बगतो पाणी
कच्ची ईंट री सामली साळ
ऊंचली धोळती पाळ

जका सारै रा सारा
जामुन निवेड़ देवंती तू
बै जामुन धर्या रा धर्या पड़्या है
कुण खावै हो थारै बिना
बोरड़ी रा ई बोरीया कद है
अब उतणा मीठा
जितणा मीठा होवंता थारै थका

थारै सारू पड़्या है जामुन
बोरड़ी रा बोरिया
बो टैम कद आसी
जद हिंडै पर बैठ’र खा सी तू जामुन
मैं कैवूंला सारा जामुन ना खा जाई
अर तू भाजै ली म्हारै लारै
ठेठ सामली धोळती पाळ तांई
जठै फळाप्यो आपणो प्रेम
अेकदम धोळो धप रेत री भांत
हां अेक बात और
कदी मिलै टैम तो जरूर आई
मैं तो फगत रूखाळी करूं
जामुन थारा ई है
जामुन थारा ई रेसी

-हरीश हैरी
11 जुलाई 2018

राजस्थानी कविता-“रीत अर प्रीत”


तू याद कर
थारी सुकाण में अेकर
जद मैं दड़ी ल्याण गयो
तू गाळ काढती सी बोली
मरज्याणां कुण बळै
सारा छाणा फोड़ नाख्या
आण दे अबकै
दड़ी सिर में ना द्यूं तो
सारो गाम छोड’र आ ईज जग्यां लाधी
अचाणचकै ई म्हानै देख’र थमगी
ना तू किं बोली,ना बोल्यो मैं
टाबरां रै रोळै सूं टूट्यो आपणो ध्यान
पतो नी कै हुयो
तू अचाणचकै ईज मुळकी
अर दड़ी अब म्हारै हात में ही

भोत बार दड़ी जावंती
अब तू कद करती रोळा
राड़ रो काम करती आ दड़ी
बणगी अब प्रेम रो राह
रमता गया टाबर
आंवती दड़ी मिलती रैई पाछी
फळती रही प्रीत

अेकर सुकाण में छाणा सटै
बडी अर म्हारी काकी री बोल चाल व्हैगी
तू ई बोलणो कर दियो बंद
ना थारो कसूर हो
ना म्हारी कोई गळती
तू फैर कदैई म्हारै सूं बोली कोनी

आज ई काकी अर बडी करै हथाई
पाछी होगी बरत्यूं
आज ई रमै टाबर
दड़ी जावै सुकाण में
टाबर दड़ी ल्यावण सारू
करै तिकड़म अर कूदै भींत
पतो नी कै होयो
परवार खातर
रीत निभांवती गई तू
अर टूटती गई आपणी प्रीत
जकी कदी बणी ही
सुकाण में दड़ी रे मिस

–हरीश हैरी
09-07-2018

Thursday, June 14, 2018

राजस्थानी कविता:-“कदी पूछी खुद नै”



तू उण टैम में
कितणा नुक्ता लेवंती
कित्ती खोज काढ लेवंती
घर में आयड़ै सैकल रे टैर नै
देख’र पूछती घरै कुण आयो हो?

सब्जी आळो आयो होसी
मा कैवंती
पण तू नट जावंती
टैर सब्जी आळै रो तो कोनी
तन्नै सो किं ठाह होवंतो

आज इतणा सालां पछै
कित्ता पग मंड्या
कितणा पग धुड़्या
गळी में सैकल
कितणा चक्कर काट्या होसी
कदी मिलै टैम
तो पूछी खुद नै
तू अब खोज क्यूं नहीं काढै
क्यूं नहीं पूछै मा स्यूं
घर में सैकल आळो कुण आयो हो?

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता:-“खारै नीम री दांतण अर तू”


म्हानै नीम पर चढेड़ै नै देख’र
तूं मांगी आप सारू
नीम री दांतण
नीम खारो हुवै
भोत खारो हुवै नीम
पण परेम रे पाण
खारे नीम री दांतण
बीं दिन बणगी मिसरी

खारा नीम तो खारा ई रैसी
पण म्हारै भांऊ आज भी
दांतण लागै उतणी ई मीठी
जितणी लागती म्हानै तू !


-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता:-“कद आसी बै दिन”


जद टाबरपणै में आंधी आंवती
म्है डरता कोनी हा
सफा ई कोनी डरता आंधी सूं
धोबा-धोबा रेत गूदड़ां पर आ जावंती
बाबो केवतां-सूत्या रेवो,सूत्या रेवो
मूंडै पर खेसला ले ल्यो
बेटी रे बाप री किसीक ठंडी हवा चालै
दिनुगै तांई रेत अर तूड़ी सूं स्सै गूदड़ भरीज जावंता

अब तो घरआळी अर टाबरां नै रेत सूं चिभखाण है
आंधी आवण सूं पैलां ई किवाड़ बंद कर देवै
घर नै कुण साफ करसी
कुण गाबा धोसी
लदग्या बै दिन कद पाछा आवै
मा गाबा ई धोवंती,घर ई साफ करती

कदी बाखळ में सूत्यो होऊं
रात नै आवै काळी पीळी आंधी
रेतरड़ै रा पाटै डूंड
मूंडै पर खेसलो
रेत लागै जाणै मांचै नै उडा'र लेजसी
बाबो केवै-सूत्या रेवो,सूत्या रेवो
बेटी रे बाप री किसीक ठंडी हवा चालै
रेत अर हवा दोनूं करै रमझोळ
गूदड़ रेत सूं भर्या जावै
ठंडी हवा करती जावै काळजो ठंडो
साळ सूं निकळ’र तूड़ी बाळां में आ बैठी
भांत भतीला कोथळिया खूणै लाग्या खड़्या है
पाडोसीयां री चादर म्हारै आंगणै मांय आ पड़ी है
मा गिणती करै-दो न्यातणा कम है
टमाटरां आळै मांडणा री अेक चादर कीकर पर टंगी खड़ी है
बाबो जुगत करै बिना फाट्यां चादर किकर उतर सकै

टाबर पाळ सूं मोरां री पांख चुगता फिरै
वैद जी जख्मी मोरां रो ईलाज करै
लाधू बाणियै री दुकान पर हथाई चालै
झांकरड़ै सूं कितणो नुकसान होयो
किता अणमोल हा बै दिन
जद आंधी आवंती
जद रेत आवंती
जद मा नहावण सारू टाबरां नै रोळा करती
टैम बीत्यो जावै
जीवन घट रीत्यो जावै
आंधी आळा बै दिन कद आसी
टाबरपणै आळा कद आसी बै दिन
आंधीआळा दिनां री ओळ्यूं आवै
पण सोने बरगी रेत रा बै दिन कोनी आवै...

-हरीश हैरी

Wednesday, June 6, 2018

राजस्थानी कविता-“मा अर आंधी”

पैलां आंवती काळी पीळी आंधी
मा फट चूल्है री आग बुझा देवंती
मोबी बेटो फट भारी पर पाणी रो लोटो नाखतो
अबै कठै है बो चूल्हो
कठै है बा भारी
साच तो ओ है
मा ही जद स्सो किं हो
घरआळी फगत केह देवै
गैलरी बंद करो रेतरड़ो आसी

अब जद ई आंधी आवै
लागै मां हेला मारै
चूल्हो मांदो कर दे रे बेटा
तूड़ी आळी साळ जड़ दे
पाणी रो लोटो ढाळ रे छोरा....
म्हानै दिखे गळी में हेला मारता टाबर
तणी सूं गाबा भेळा करती बाई
आंधी रे मिस लागै
जाणै मा आई है

-हरीश हैरी

Wednesday, August 24, 2016

कविता-“बटाऊ”


पहले बटाऊ आते थे
तो खूब आवभगत होती
मगर अब उनके
घर तक पहुँचते-पहुँचते
पाँच-सात फोन आ ही जाते हैं
यह सब प्रायोजित सा लगता है
तभी तो हम
पहले की तरह
कहाँ कर पाते हैं
बटाऊ की सेवा !

कविता-“राम-राम”


आकाश में
स्वच्छंद उड़ना हो
जिसका काम
पिंजरे में
कैद तोता
कैसे बोले
राम-राम !

-हरीश हैरी

कविता-"गलियां"



गाँव की कच्ची गलियाँ
अब सड़कें बन गईं
कुत्तों और बच्चों को छोड़कर
 सब खुश हैं !

-हरीश हैरी

कविता-“वोट"


मैं भले ही
तेरे जिक्र में हूँ !
मैं आदमी हूँ
या वोट हूँ ?
अब तक इस
फिक्र में हूँ !

-हरीश हैरी