Sunday, October 16, 2011

राजस्थानी कविता-"जनता अ'र सिरकार"

म्है केयो-भोळी जनता गरीब है,
बै बोल्या-अे तो आप-2 रा नसीब है
म्है केयो-अब तो इयां नी करणो,
बै बोल्या-थारे करमा में लिख्योङो है मरणो
म्है केयो-थे केवा नी देस्यां सङक,बिजली अ'र पाणी,
बै बोल्या-म्हारो तो काम है गोळी गिटाणी
म्है केयो-थे तो म्हारा साचा हज़ूर हा,
बै बोल्या-अे तो सगळा थारा ईज कसूर हा
म्है केयो-थे बात बताई बिसी ईज करणी है,
बै बोल्या-पैलां तो आप री जेबां भरणी है
म्है केयो-थे तो म्हारै बी नुईं स्कीम काडी है,
बै बोल्या-बा तो म्है थारी जङ बाडी है
म्है केयो-म्है थारै पर विस्वास करयो,
बै बोल्या-थे आप रो ईज सित्यानास करयो
 म्है केयो-अबकै तो पक्की ईज हार जासी,
बै बोल्या-थारो भाई कोई और जीता सी
म्है केयो-अब थे ईज लगाओ बेड़ो पार,
बै बोल्या-जूता मारो दो अर करद्यौ बार
  -हरीश हैरी