Wednesday, August 24, 2016

कविता-“बटाऊ”


पहले बटाऊ आते थे
तो खूब आवभगत होती
मगर अब उनके
घर तक पहुँचते-पहुँचते
पाँच-सात फोन आ ही जाते हैं
यह सब प्रायोजित सा लगता है
तभी तो हम
पहले की तरह
कहाँ कर पाते हैं
बटाऊ की सेवा !

कविता-“राम-राम”


आकाश में
स्वच्छंद उड़ना हो
जिसका काम
पिंजरे में
कैद तोता
कैसे बोले
राम-राम !

-हरीश हैरी

कविता-"गलियां"



गाँव की कच्ची गलियाँ
अब सड़कें बन गईं
कुत्तों और बच्चों को छोड़कर
 सब खुश हैं !

-हरीश हैरी

कविता-“वोट"


मैं भले ही
तेरे जिक्र में हूँ !
मैं आदमी हूँ
या वोट हूँ ?
अब तक इस
फिक्र में हूँ !

-हरीश हैरी

कविता-“मिट्टी और हाथ"



मिट्टी हाथों में पड़कर ईंट हुई
ईंट हाथों में पड़कर आलीशान इमारत हुई
मिट्टी कहाँ से कहाँ पहुँच गई
हाथ अभी भी बना रहे हैं
मिट्टी से ईंट और ईंट से इमारत !
-हरीश हैरी


गुरूदेव ओम पुरोहित कागद को समर्पित



कागद अब स्यात कागद नहीं है
पोथो है पण थोथो नहीं है
हाँ कागद सफा कोरो हो
जद ओ छोरो हो
कागद भी लिख्या हा कागद
गुलाबी कागद
घणा जोध जवान हा जद !
बगत रै साथै-साथै कागद मांय जुड़ता रैया
जिन्दगाणी रा भांत भंतीला पाठ
कागद रा बरका होग्या अबै साठ
अस्सी पाना होवण सारू
खैचळ जारी है
साहित री जबरी बखारी है
कागद कदैई काळो नहीं दीखै
सीखणीया आप सूं देख देख'र सीखै
हरेक राम जी सूं चावै ओ
कागद रा पाना हुवै पूरा सौ

-हरीश हैरी....कागद जी रो बैरी
जलमदिन री घणी सुभकामनावां...

Sunday, April 17, 2016

राजस्थानी कविता-“रामरमी"



पैलां बेधड़क होय'र
कर लेतां राम-राम
अर सामलो ई खूब राजी होय'र
करतो रामरमी
पण अबै
कई पंथा मांय बंटग्यो मिनख
दिमाक पर जोर देय'र
सोचणो पडै़ कै
सामलै रो कुण सो पंथ है
उणरै हिसाब सूं ई
कर लेवां फगत झूठी रामरमी !

-हरीश हैरी

कविता-“पिंजरे के मायने"



यूं तो सोने का पिंजरा
उस घर की शान था.
आसमां से होके जुदा
पंछी वो परेशान था !

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता-“फरक"


पैलां
सामली साळ रा किवाड़
बंद करतै पाण ई
आ जांवती नींद
का फेर दोफारै मांय
नीमड़ी नीचै पंखो घालतै टैम
ठा कोनी कद आ जांवती नींद !
अब कूलर पंखा
अर डबल बैड सगळा है
फगत नींद ई कोनी !

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता-“उडीक"



बाबै म्हारी भणाई सारू
ल्यार दियो मेज अर लैम्प
बीं दिन
दिन छिपणो  होग्यो ओखो
अंधेरै पड़्यां लैम्प चसा'र
भणन ढुकग्यो जद
पढतां-पढ़तां दिन उगा दियो
म्हूं एकर फैर लागग्यो
आथण री उड़ीक में !

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता-“बाबो-छह"


जैपर रै अस्पताळ मांय
बाबै री जेब स्यूं
निकळग्या सात हजार रीपीया
बाबो पैलां उदास होया
पर अगलै ई छिण
दार्सनिक दांई बोल्या-चलो खेड़ो छुट्यो
लिखेड़ा है बीता पईसा तो अठै लागणा ई है
चलो किं भार उतर्यो !

-हरीश हैरी

एक राजस्थानी डांखळो



किसान रो पाडोसी हो बाबूलाल बजाजगी
किसान सूं होगी एकर बान्नै जबरी नाराजगी
किसान करी जुगत
स्याम रे बगत
दो बाल्टी कानां तक भरगे दे आयो प्याजगी

-हरीश हैरी

कविता-“शब्द यात्री"


समय के मार्ग पर
चलते रहे शब्द यात्री
घिसते रहे
घटते रहे
मरते रहे
मृत आत्माओं के साथ
केवल लाशें बची थीं !

-हरीश हैरी

एक राजस्थानी हाईकु


पराई कार
आपणै सारू अब
जमा बेकार

Saturday, January 2, 2016

राजस्थानी कविता-“बाबो-पाँच"


बाबो आज धरती पर कोनी
पर अड़ूवै नै पिरायड़ो
बाबै रो कुड़तो
अजै ई करै रूखाळी
सुना पसुवां स्यूं
बाबै रो रोम रोम
अजे ई खेत में बसै

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता-“बाबो-चार"


खूंटी टांगेड़ो
गुड़-चा रो झोळो
आळै में धरियोडयौ
ढेरियौ अर बंटियौ
खूणै में पड़ी गांठैड़ी मोचड़्यां
भींत रै सारै ऊभी सैंकल
जाणूं पाड़ै हैला
बिड़क सी पड़ै जाणूं
चटकौ करो
खेत नैं हूग्यौ मोड़ौ

-हरीश हैरी