Thursday, June 14, 2018

राजस्थानी कविता:-“कदी पूछी खुद नै”



तू उण टैम में
कितणा नुक्ता लेवंती
कित्ती खोज काढ लेवंती
घर में आयड़ै सैकल रे टैर नै
देख’र पूछती घरै कुण आयो हो?

सब्जी आळो आयो होसी
मा कैवंती
पण तू नट जावंती
टैर सब्जी आळै रो तो कोनी
तन्नै सो किं ठाह होवंतो

आज इतणा सालां पछै
कित्ता पग मंड्या
कितणा पग धुड़्या
गळी में सैकल
कितणा चक्कर काट्या होसी
कदी मिलै टैम
तो पूछी खुद नै
तू अब खोज क्यूं नहीं काढै
क्यूं नहीं पूछै मा स्यूं
घर में सैकल आळो कुण आयो हो?

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता:-“खारै नीम री दांतण अर तू”


म्हानै नीम पर चढेड़ै नै देख’र
तूं मांगी आप सारू
नीम री दांतण
नीम खारो हुवै
भोत खारो हुवै नीम
पण परेम रे पाण
खारे नीम री दांतण
बीं दिन बणगी मिसरी

खारा नीम तो खारा ई रैसी
पण म्हारै भांऊ आज भी
दांतण लागै उतणी ई मीठी
जितणी लागती म्हानै तू !


-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता:-“कद आसी बै दिन”


जद टाबरपणै में आंधी आंवती
म्है डरता कोनी हा
सफा ई कोनी डरता आंधी सूं
धोबा-धोबा रेत गूदड़ां पर आ जावंती
बाबो केवतां-सूत्या रेवो,सूत्या रेवो
मूंडै पर खेसला ले ल्यो
बेटी रे बाप री किसीक ठंडी हवा चालै
दिनुगै तांई रेत अर तूड़ी सूं स्सै गूदड़ भरीज जावंता

अब तो घरआळी अर टाबरां नै रेत सूं चिभखाण है
आंधी आवण सूं पैलां ई किवाड़ बंद कर देवै
घर नै कुण साफ करसी
कुण गाबा धोसी
लदग्या बै दिन कद पाछा आवै
मा गाबा ई धोवंती,घर ई साफ करती

कदी बाखळ में सूत्यो होऊं
रात नै आवै काळी पीळी आंधी
रेतरड़ै रा पाटै डूंड
मूंडै पर खेसलो
रेत लागै जाणै मांचै नै उडा'र लेजसी
बाबो केवै-सूत्या रेवो,सूत्या रेवो
बेटी रे बाप री किसीक ठंडी हवा चालै
रेत अर हवा दोनूं करै रमझोळ
गूदड़ रेत सूं भर्या जावै
ठंडी हवा करती जावै काळजो ठंडो
साळ सूं निकळ’र तूड़ी बाळां में आ बैठी
भांत भतीला कोथळिया खूणै लाग्या खड़्या है
पाडोसीयां री चादर म्हारै आंगणै मांय आ पड़ी है
मा गिणती करै-दो न्यातणा कम है
टमाटरां आळै मांडणा री अेक चादर कीकर पर टंगी खड़ी है
बाबो जुगत करै बिना फाट्यां चादर किकर उतर सकै

टाबर पाळ सूं मोरां री पांख चुगता फिरै
वैद जी जख्मी मोरां रो ईलाज करै
लाधू बाणियै री दुकान पर हथाई चालै
झांकरड़ै सूं कितणो नुकसान होयो
किता अणमोल हा बै दिन
जद आंधी आवंती
जद रेत आवंती
जद मा नहावण सारू टाबरां नै रोळा करती
टैम बीत्यो जावै
जीवन घट रीत्यो जावै
आंधी आळा बै दिन कद आसी
टाबरपणै आळा कद आसी बै दिन
आंधीआळा दिनां री ओळ्यूं आवै
पण सोने बरगी रेत रा बै दिन कोनी आवै...

-हरीश हैरी

Wednesday, June 6, 2018

राजस्थानी कविता-“मा अर आंधी”

पैलां आंवती काळी पीळी आंधी
मा फट चूल्है री आग बुझा देवंती
मोबी बेटो फट भारी पर पाणी रो लोटो नाखतो
अबै कठै है बो चूल्हो
कठै है बा भारी
साच तो ओ है
मा ही जद स्सो किं हो
घरआळी फगत केह देवै
गैलरी बंद करो रेतरड़ो आसी

अब जद ई आंधी आवै
लागै मां हेला मारै
चूल्हो मांदो कर दे रे बेटा
तूड़ी आळी साळ जड़ दे
पाणी रो लोटो ढाळ रे छोरा....
म्हानै दिखे गळी में हेला मारता टाबर
तणी सूं गाबा भेळा करती बाई
आंधी रे मिस लागै
जाणै मा आई है

-हरीश हैरी