Thursday, November 26, 2015

राजस्थानी कविता-“बाबो-तीन"


बाबो टूटेड़ी चप्पल नै
गांठतै टैम बण जांवतो मोची
छिणी री धार लगांवतै टैम लुहार
पलड़ सीड़तै टैम दर्जी !
तंगळी ठीक करता जद
मिसतरी कद करतो रीस बाबै री !
हरेक चीज नै जोड़-तोड़'र
बाबो कर ई देवंतो जुगाड़
क्यूंक बाबो तो बाबो ई हो !
-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता-“बाबो-दो"


अच्छा तो तू मोहन रो छोरो है !
बेटा तेरो बाप जवानपणै मांय
5 थैला यूरिया रा चक देंवतो
किशोरी सेठ रै नोहरै मांय
खळ री पाँच बोरी बण
नितनेम चकणी ई चकणी
मुक्को मार'र ऊंट ने आडो पटक देंवतो
सैकल पर बीस फुटी ट्युबैल री नाळ नै
मोढे पर रख'र सैर सूं चुड़ी कढा ल्यावतों
सैकल नै चालती नै उछाळ देवंतो
जबरो जवान हो !
धोरां मांय फसैड़ी कार नै
हाथां स्यूं चक'र बारै काढ देंवतो !
तेरो बाप एक जग्यां बैठ्यो-बैठ्यो
दो किलो गुड़ खा जांवतो
खुराक खूब ही
दो जणा मिल'र एक बोरी चकता
पण बो सेर एकलो ई दो बोरी
काख मांय घाल ल्यांवतो
माटी मांय पचतो भोत हो
गाँव रे हरेक बडेरै कन्नै बस एई किस्सा हा
जद म्हूं कैंवतो मैं मोहनलाल रो छोरो हूं
-हरीश हैरी

Wednesday, November 25, 2015

राजस्थानी कविता-“बाबो-एक"


आज जैपर रै एक मॉल में
मूंघा सूटां रा पईसा
देवंतै बगत
म्हनै चेतै आयो
इण रो मोल तो
बाबै कई साल पैलां ई
चुका दियो हो
बाबो पंजी-पंजी बचावण सारू
एक ई कुड़तै-पजामे में
काढ देवंता सो सियाळो,
सैर सूं बाई साईकल माथै
ले आंवता खळ री बोरी,
टूटेड़ी चालणी सूं छाण लेंवता चा
अ'र हाथां गांठेड़ी फिड्डी जूती
बाबै री खुद्दारी आगै
सरमां मरती
चाल ई जांवती
कैई महीना और
म्हूं पईसा देंवती टैम
देखूं जाणै बाबो
अजै ई त्यार खड़्या है
सैर जावण सारु
बाईसाइकल  रै हैंडल माथै
 झोळो बांध'र
मुळकता बोल्या
चल मुन्डेया !!

-हरीश हैरी