Bharatvasiyo
Ab aap se kya kahen...
Sunday, May 12, 2013
छाया-चित्र:16
पश्चिम में खङे
सूरज ने देखा
धूप से लङकर
दीवार की
दूसरी तरफ
जा बैठी
छाया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:15
पेङ के नीचे
बैठी
बेटी छाया से
मिलने आए
पिता सूरज
और
माँ धूप।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:14
सूरज
पेङ के नीचे
पङी छाया को
मृत समझ
छोङकर चला गया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:13
सूरज से
हमेशा दूर रही
छाया।
सूरज ने
धूप से
विवाह
कर लिया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:12
नौजवान सूरज
करता रहा
दिनभर सफर।
बूढ़ी छाया
थक कर
पेङ के नीचे
बैठ गई।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:11
सूरज ने
निचोङ कर
पेङ के नीचे
डाल दिया
छाया रूपी रस
और फेंक दिया
धूप रूपी छिलका।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:दस
जेठ की
दोपहर में
सूरज से
खूब लङा
बादल।
मगर
नहीं बचा पाया
छाया को।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:नौ
धूप की
सौतेली बहन
छाया
जिसे
सूरज पिता का
प्यार नहीं मिला।
-हरीश हैरी
खुशी
जंगल में
बरसों से
उदास खङे
पेङ ने
लकङहारे को
कुल्हाङी लिए
आते देखा...
पेङ आज
बहुत खुश था।
-हरीश हैरी
Sunday, May 5, 2013
छाया-चित्र:आठ
सिर पर
चढ़ी धूप तो
पैर पकङ कर
खूब रोई छाया
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:सात
दोपहर में
आग बबूला होते
सूरज को देखकर
डर के मारे
दिवार से
बच्ची की तरह
लिपट गई छाया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:छह
सूरज दिनभर था
धूप के साथ।
शाम को
दिवार से
पीठ लगाए
उदासबैठी थी
छाया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:पाँच
सूरज की
शह पर
धूप ने
पेङ के नीचे
बैठी छाया को
अकेली देखकर
चारों तरफ से
घेर लिया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:चार
जून की
दोपहर में
सूरज से
नहीं मिली
छाया।
दिसम्बर में
छाया करती रही
इंतजार
रूठा सूरज
घर से
बाहर नहीं
निकला।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:तीन
बादलों की फौज
उलझ पङी
सूरज से
मरती छाया
फिर से हो गई
जिंदा।
-हरीश हैरी
राजस्थानी कविता-“आस्था"
गळी में
लङतां गोधां नै
नीं छुङा सक्या
गाँव आळा पाँच-सात
लठ्ठधारी मिनख
माऊ बोल दियो
सवा पांच रो परसाद
गोधां अळगा जांवता रैया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:दो
भरी दोपहर में
देर तक चला
धूप-छाया का
युद्ध।
हारकर
पेङ के नीचे
बैठ गई
बेचारी छाया।
-हरीश हैरी
छाया-चित्र:एक
तपती दोपहर में
सूरज
खङा करता रहा
इंतजार
छाया
घर से
बाहर नहीं
निकली।
-हरीश हैरी
Monday, February 18, 2013
माँ
जब मेरी माँ मेरे पास है,
कदमों में मेरे आकाश है।
माँ है मुकम्मल दुनिया मेरी,
इसका मुझे अहसास है।
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