Saturday, January 2, 2016

राजस्थानी कविता-“बाबो-पाँच"


बाबो आज धरती पर कोनी
पर अड़ूवै नै पिरायड़ो
बाबै रो कुड़तो
अजै ई करै रूखाळी
सुना पसुवां स्यूं
बाबै रो रोम रोम
अजे ई खेत में बसै

-हरीश हैरी

राजस्थानी कविता-“बाबो-चार"


खूंटी टांगेड़ो
गुड़-चा रो झोळो
आळै में धरियोडयौ
ढेरियौ अर बंटियौ
खूणै में पड़ी गांठैड़ी मोचड़्यां
भींत रै सारै ऊभी सैंकल
जाणूं पाड़ै हैला
बिड़क सी पड़ै जाणूं
चटकौ करो
खेत नैं हूग्यौ मोड़ौ

-हरीश हैरी