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Sunday, April 17, 2016
राजस्थानी कविता-“रामरमी"
पैलां बेधड़क होय'र
कर लेतां राम-राम
अर सामलो ई खूब राजी होय'र
करतो रामरमी
पण अबै
कई पंथा मांय बंटग्यो मिनख
दिमाक पर जोर देय'र
सोचणो पडै़ कै
सामलै रो कुण सो पंथ है
उणरै हिसाब सूं ई
कर लेवां फगत झूठी रामरमी !
-हरीश हैरी
कविता-“पिंजरे के मायने"
यूं तो सोने का पिंजरा
उस घर की शान था.
आसमां से होके जुदा
पंछी वो परेशान था !
-हरीश हैरी
राजस्थानी कविता-“फरक"
पैलां
सामली साळ रा किवाड़
बंद करतै पाण ई
आ जांवती नींद
का फेर दोफारै मांय
नीमड़ी नीचै पंखो घालतै टैम
ठा कोनी कद आ जांवती नींद !
अब कूलर पंखा
अर डबल बैड सगळा है
फगत नींद ई कोनी !
-हरीश हैरी
राजस्थानी कविता-“उडीक"
बाबै म्हारी भणाई सारू
ल्यार दियो मेज अर लैम्प
बीं दिन
दिन छिपणो होग्यो ओखो
अंधेरै पड़्यां लैम्प चसा'र
भणन ढुकग्यो जद
पढतां-पढ़तां दिन उगा दियो
म्हूं एकर फैर लागग्यो
आथण री उड़ीक में !
-हरीश हैरी
राजस्थानी कविता-“बाबो-छह"
जैपर रै अस्पताळ मांय
बाबै री जेब स्यूं
निकळग्या सात हजार रीपीया
बाबो पैलां उदास होया
पर अगलै ई छिण
दार्सनिक दांई बोल्या-चलो खेड़ो छुट्यो
लिखेड़ा है बीता पईसा तो अठै लागणा ई है
चलो किं भार उतर्यो !
-हरीश हैरी
एक राजस्थानी डांखळो
किसान रो पाडोसी हो बाबूलाल बजाजगी
किसान सूं होगी एकर बान्नै जबरी नाराजगी
किसान करी जुगत
स्याम रे बगत
दो बाल्टी कानां तक भरगे दे आयो प्याजगी
-हरीश हैरी
कविता-“शब्द यात्री"
समय के मार्ग पर
चलते रहे शब्द यात्री
घिसते रहे
घटते रहे
मरते रहे
मृत आत्माओं के साथ
केवल लाशें बची थीं !
-हरीश हैरी
एक राजस्थानी हाईकु
पराई कार
आपणै सारू अब
जमा बेकार
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