Saturday, November 24, 2012

लघुकथा-"शमां और परवाना"

लोग कहते हैं कि शमां जलती है तो परवाने प्यार जताने चले आते हैं मगर सच कुछ और था..........परवाने को ये उजाला फूटी आँख नहीं सुहाता था। दिन के उजाले में परवाने कुछ नहीं कर पाए,मजबूरन उन्हें छिपना पङा।शाम हुई,शमां जली।घात लगाकर बैठे परवानों ने एक साथ धावा बोल दिया। परवाने एक-एक कर शहीद होते जा रहे थे पर शमां की सेहत पर कोई असर नहीं पङा।तभी एक परवाने ने वो कारनामा कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर सका।उसने अपने पंख को जलती शमां पर इस अंदाज से मारा कि शमां पलक झपकते ही बुझ गई।परवाने झूम रहे थे उनकी कट्टर दुश्मन शमां खत्म हो चुकी थी और अब कमान उनके साथी अंधेरे के हाथ में थी।
 -हरीश हैरी

Monday, November 19, 2012

18 S.P.D.में हास्य कवि सम्मेलन के दौरान प्रस्तुति देते हुए हरीश हैरी मार्च 2012

18 S.P.D.में हास्य कवि सम्मेलन के दौरान प्रस्तुति देते हुए हरीश हैरी मार्च 2012

Sunday, November 18, 2012

लघुकथा-"मंगळवार"

"बाई कई दिनां स्यूं किं कोनी खायो...रोटी..."
-बाबा आज म्हारै तो मंगळवार है।
उगते बुधवार नै गाँव रे बारै भीखमंगे री
लास पर कागला बैठ्या हा।
-हरीश हैरी 

लघुकथा-"बदळाव"

"और भिया किंया है?"रामलाल गळी बगते नै बुझ्यो
 -"ठीक है बाई!"उणनै पड़ुत्तर मिल्यो
बीं दिन पछै रामलाल मीठो बोलणो छोड दियो।
-हरी
श हैरी    

Saturday, November 17, 2012

लघुकथा-"टैम"

"भाई जी के काम पुळा राख्यो है?"
"किं कोनी,बैहलो ही हूँ।"
"तो कदैई घरै पधारो,बात-बतळ करां।"
"अब थानै के बतावां...टैम ई कोनी!"
-हरीश हैरी