Sunday, February 12, 2012

लघुकथा-"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते"

आज फिर इंद्र का सिंहासन डोलने लगा।उर्वशी को याद किया गया।उर्वशी ठहरी गुलाम!पति और बच्चों को छोड़कर ऋषि............तपस्या भंग!श्राप मिला,पत्थर हो गई।
       अप्सराएं महीन कपड़ों में सज-धज कर झुक-झुक कर देवताओं को अपने हाथों से शराब पिला रहीं थी।अंगूर और नमकीन परोसे जा रहे थे।शराब और शबाब.......सब मस्त!इंद्र की यह अविस्मरणीय विजय थी !
      ........और धरती पर ऋषि बड़े गर्व से बालकों को पढ़ा रहे थे-"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:!"

-हरीश हैरी