Monday, November 10, 2014

राजस्थानी कविता-“आछा-माडा़ दिन"


जका देवता
सवा रिपीये रै
परसाद में
हो जांवता झट राजी
बै इज देवता
उठग्या
सौ-सौ कोस दूर
सवा मणी सूं ई
नी आया नेड़ै
ओ फरक है फगत
आछा-माड़ा दिनां रो !

-हरीश हैरी

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