Wednesday, December 17, 2014

कविता-“अखण्ड अवधूत सूरज"


अखण्ड अवधूत सूरज
अपनी ही धुन में
सदियों से था
तपस्या में रत.
खूब सज-संवर कर आई
धरती अप्सरा
इर्द-गिर्द घूमती रही
मगर कर नहीं पाई
तपस्या भंग !

-हरीश हैरी

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