Wednesday, December 17, 2014

कविता-“दिवाना चाँद"


दिवाना चाँद
सब कुछ भूलकर
दिन-रात
चक्कर काटता रहा
धरती के इर्द-गिर्द.
बेखबर धरती
सूरज के अगल-बगल
घूमती नज़र आई.
तेरी-मेरी प्रेम कहानी भी
चाँद-धरती और सूरज जैसी
जो चली आ रही है सदियों से
बिना रुके बिना थमे.
न चाँद को धरती मिली
और न धरती को सूरज.
-हरीश हैरी

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