Wednesday, November 25, 2015

राजस्थानी कविता-“बाबो-एक"


आज जैपर रै एक मॉल में
मूंघा सूटां रा पईसा
देवंतै बगत
म्हनै चेतै आयो
इण रो मोल तो
बाबै कई साल पैलां ई
चुका दियो हो
बाबो पंजी-पंजी बचावण सारू
एक ई कुड़तै-पजामे में
काढ देवंता सो सियाळो,
सैर सूं बाई साईकल माथै
ले आंवता खळ री बोरी,
टूटेड़ी चालणी सूं छाण लेंवता चा
अ'र हाथां गांठेड़ी फिड्डी जूती
बाबै री खुद्दारी आगै
सरमां मरती
चाल ई जांवती
कैई महीना और
म्हूं पईसा देंवती टैम
देखूं जाणै बाबो
अजै ई त्यार खड़्या है
सैर जावण सारु
बाईसाइकल  रै हैंडल माथै
 झोळो बांध'र
मुळकता बोल्या
चल मुन्डेया !!

-हरीश हैरी

No comments:

Post a Comment