Monday, February 11, 2019

राजस्थानी कविता-“रीत अर प्रीत”


तू याद कर
थारी सुकाण में अेकर
जद मैं दड़ी ल्याण गयो
तू गाळ काढती सी बोली
मरज्याणां कुण बळै
सारा छाणा फोड़ नाख्या
आण दे अबकै
दड़ी सिर में ना द्यूं तो
सारो गाम छोड’र आ ईज जग्यां लाधी
अचाणचकै ई म्हानै देख’र थमगी
ना तू किं बोली,ना बोल्यो मैं
टाबरां रै रोळै सूं टूट्यो आपणो ध्यान
पतो नी कै हुयो
तू अचाणचकै ईज मुळकी
अर दड़ी अब म्हारै हात में ही

भोत बार दड़ी जावंती
अब तू कद करती रोळा
राड़ रो काम करती आ दड़ी
बणगी अब प्रेम रो राह
रमता गया टाबर
आंवती दड़ी मिलती रैई पाछी
फळती रही प्रीत

अेकर सुकाण में छाणा सटै
बडी अर म्हारी काकी री बोल चाल व्हैगी
तू ई बोलणो कर दियो बंद
ना थारो कसूर हो
ना म्हारी कोई गळती
तू फैर कदैई म्हारै सूं बोली कोनी

आज ई काकी अर बडी करै हथाई
पाछी होगी बरत्यूं
आज ई रमै टाबर
दड़ी जावै सुकाण में
टाबर दड़ी ल्यावण सारू
करै तिकड़म अर कूदै भींत
पतो नी कै होयो
परवार खातर
रीत निभांवती गई तू
अर टूटती गई आपणी प्रीत
जकी कदी बणी ही
सुकाण में दड़ी रे मिस

–हरीश हैरी
09-07-2018

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