Sunday, April 17, 2016

राजस्थानी कविता-“बाबो-छह"


जैपर रै अस्पताळ मांय
बाबै री जेब स्यूं
निकळग्या सात हजार रीपीया
बाबो पैलां उदास होया
पर अगलै ई छिण
दार्सनिक दांई बोल्या-चलो खेड़ो छुट्यो
लिखेड़ा है बीता पईसा तो अठै लागणा ई है
चलो किं भार उतर्यो !

-हरीश हैरी

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