Sunday, April 17, 2016

राजस्थानी कविता-“रामरमी"



पैलां बेधड़क होय'र
कर लेतां राम-राम
अर सामलो ई खूब राजी होय'र
करतो रामरमी
पण अबै
कई पंथा मांय बंटग्यो मिनख
दिमाक पर जोर देय'र
सोचणो पडै़ कै
सामलै रो कुण सो पंथ है
उणरै हिसाब सूं ई
कर लेवां फगत झूठी रामरमी !

-हरीश हैरी

No comments:

Post a Comment