Wednesday, August 24, 2016

कविता-“बटाऊ”


पहले बटाऊ आते थे
तो खूब आवभगत होती
मगर अब उनके
घर तक पहुँचते-पहुँचते
पाँच-सात फोन आ ही जाते हैं
यह सब प्रायोजित सा लगता है
तभी तो हम
पहले की तरह
कहाँ कर पाते हैं
बटाऊ की सेवा !

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