Thursday, June 14, 2018

राजस्थानी कविता:-“कद आसी बै दिन”


जद टाबरपणै में आंधी आंवती
म्है डरता कोनी हा
सफा ई कोनी डरता आंधी सूं
धोबा-धोबा रेत गूदड़ां पर आ जावंती
बाबो केवतां-सूत्या रेवो,सूत्या रेवो
मूंडै पर खेसला ले ल्यो
बेटी रे बाप री किसीक ठंडी हवा चालै
दिनुगै तांई रेत अर तूड़ी सूं स्सै गूदड़ भरीज जावंता

अब तो घरआळी अर टाबरां नै रेत सूं चिभखाण है
आंधी आवण सूं पैलां ई किवाड़ बंद कर देवै
घर नै कुण साफ करसी
कुण गाबा धोसी
लदग्या बै दिन कद पाछा आवै
मा गाबा ई धोवंती,घर ई साफ करती

कदी बाखळ में सूत्यो होऊं
रात नै आवै काळी पीळी आंधी
रेतरड़ै रा पाटै डूंड
मूंडै पर खेसलो
रेत लागै जाणै मांचै नै उडा'र लेजसी
बाबो केवै-सूत्या रेवो,सूत्या रेवो
बेटी रे बाप री किसीक ठंडी हवा चालै
रेत अर हवा दोनूं करै रमझोळ
गूदड़ रेत सूं भर्या जावै
ठंडी हवा करती जावै काळजो ठंडो
साळ सूं निकळ’र तूड़ी बाळां में आ बैठी
भांत भतीला कोथळिया खूणै लाग्या खड़्या है
पाडोसीयां री चादर म्हारै आंगणै मांय आ पड़ी है
मा गिणती करै-दो न्यातणा कम है
टमाटरां आळै मांडणा री अेक चादर कीकर पर टंगी खड़ी है
बाबो जुगत करै बिना फाट्यां चादर किकर उतर सकै

टाबर पाळ सूं मोरां री पांख चुगता फिरै
वैद जी जख्मी मोरां रो ईलाज करै
लाधू बाणियै री दुकान पर हथाई चालै
झांकरड़ै सूं कितणो नुकसान होयो
किता अणमोल हा बै दिन
जद आंधी आवंती
जद रेत आवंती
जद मा नहावण सारू टाबरां नै रोळा करती
टैम बीत्यो जावै
जीवन घट रीत्यो जावै
आंधी आळा बै दिन कद आसी
टाबरपणै आळा कद आसी बै दिन
आंधीआळा दिनां री ओळ्यूं आवै
पण सोने बरगी रेत रा बै दिन कोनी आवै...

-हरीश हैरी

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