Sunday, November 18, 2012

लघुकथा-"बदळाव"

"और भिया किंया है?"रामलाल गळी बगते नै बुझ्यो
 -"ठीक है बाई!"उणनै पड़ुत्तर मिल्यो
बीं दिन पछै रामलाल मीठो बोलणो छोड दियो।
-हरी
श हैरी    

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