Sunday, November 18, 2012

लघुकथा-"मंगळवार"

"बाई कई दिनां स्यूं किं कोनी खायो...रोटी..."
-बाबा आज म्हारै तो मंगळवार है।
उगते बुधवार नै गाँव रे बारै भीखमंगे री
लास पर कागला बैठ्या हा।
-हरीश हैरी 

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