Saturday, November 24, 2012

लघुकथा-"शमां और परवाना"

लोग कहते हैं कि शमां जलती है तो परवाने प्यार जताने चले आते हैं मगर सच कुछ और था..........परवाने को ये उजाला फूटी आँख नहीं सुहाता था। दिन के उजाले में परवाने कुछ नहीं कर पाए,मजबूरन उन्हें छिपना पङा।शाम हुई,शमां जली।घात लगाकर बैठे परवानों ने एक साथ धावा बोल दिया। परवाने एक-एक कर शहीद होते जा रहे थे पर शमां की सेहत पर कोई असर नहीं पङा।तभी एक परवाने ने वो कारनामा कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर सका।उसने अपने पंख को जलती शमां पर इस अंदाज से मारा कि शमां पलक झपकते ही बुझ गई।परवाने झूम रहे थे उनकी कट्टर दुश्मन शमां खत्म हो चुकी थी और अब कमान उनके साथी अंधेरे के हाथ में थी।
 -हरीश हैरी

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