Wednesday, October 29, 2014

"पेड़"


काश कोई पत्थर मारता
या छाया तले बैठता
शाखाओं से झूलता
या फिर काट डालता कोई शाखा
आग जलाने के लिए
मगर ऐसा हो न सका
सबकी किस्मत कहाँ अच्छी होती है
गाँव से बहुत दूर खङा था
वो उदास पेङ।

-हरीश हैरी

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